गुरुवार, 30 जुलाई 2020

थोड़ा सा प्यार


थोड़ा सा प्यार घोल लेना ,सब आसान लगेगा
दुख क्या चीज है ,तूफान भी मेहमान लगेगा

अजब हकीकत है ज़िन्दगी की
कभी जोग , कभी जँग , कहीं टूटन-बिखरन
तू भी कोई रँग घोल दे ,
दूर नहीं अरमान लगेगा

रँगीन बोतलों में बिकते हैं इमोशन्स
सोडा-वॉटर की तरह बैठ जाते हैं पलों में
जो मिला है उसी में थोड़ा सा रस घोल दे ,
पाँव के नीचे आसमान लगेगा

बेचैनियों के बिस्तर पर नीँद आयेगी न कभी
हालत के सजदे में सोच का रुख मोड़ दे
काँटों के बिस्तर पर भी ,
फूलों की महक का अनुमान लगेगा

थोड़ा सा प्यार घोल लेना ,सब आसान लगेगा
दुख क्या चीज है ,तूफान भी मेहमान लगेगा 

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

माँ के लिए श्रद्धाँजलि


माँ , आप चली गईं हैं ,
मेरे ज़ेहन के चप्पे-चप्पे पर छाप आपकी है

नहीं भूलता है माँ की आँखों की पुतलियों का रँग भी
वो ममता भरी आँखों में तैरता हुआ निष्छल सा प्यार

वो पलने में झुलाती हुई माँ और नन्हीं जान का रिश्ता
उम्र भर साथ चलता है वो ठण्डी  छॉंव सा नाता

नहीं आसान होता है यादों के किसी वैक्यूम को भरना
जो वजूद का हिस्सा हो उसके बिना चलना
ये वक्त की ही फितरत है , दवा बन कर भरपाई करना

मगर माँ ,आप ही बोलती हैं मेरे मुँह से कितनी ही बातें
वो मुहावरे ,वो सहज रहने को काम में डूबने के नुस्खे
वो कर्मों को किस्मत बताती हुईं आप
वो कर्मठ ,समर्पित ,सहज और मिलनसार व्यक्तित्व
नियति के क्रूर हाथों में कभी न डोलती हुईं आप
वो जिम्मेदारियों को हँस कर गले से लगाती हुईं आप
मेरे अनुशासित , रोबीले पिता का सम्बल ,
वो आपका अदब ,उनके अदब में चार चाँद लगाती हुईं आप
मेरे बचपन की किताब के हर पन्ने पर आप
मेरी नीँव में पल-पल मुस्कराती हुईं आप 

शनिवार, 18 जुलाई 2020

मौत से रू-ब-रू

जब हम रू-ब-रू हो कर आते हैं मौत से
जैसे बुझती हुई सी लौ दिप से जल उठती है सीने में
ज़िन्दगी कुछ इस तरह मेहरबान हुई सी लगती है
वो पेड़-पौधों की मूक जुबानें ,वो लम्हें ,वो सारे जरिये
बोलते हुए से लगते हैं
हाँ कह डाले हम सब कुछ दुनिया से
वो कड़ियाँ जोड़ते हैं
ज़िन्दगी के सजदे में ज़िन्दगी का रुख ही मोड़ते हैं

हर कोई नहीं होता इतना खुशनसीब
हर किसी की राह में फूल ही बिछे हुए नहीं होते
हर किसी के लिए दुआओं में उठे हुए हाथ भी नहीं होते
चलना पड़ता है अपने ही हौसले के दम पर
गर जली हो कोई शम्मा सीने में ,
जो बदल सके अँधेरे को उजाले में
उतनी ही रौशनी काफी है चलने के लिए

उन सारे लम्हों और जज़्बातों को सलाम
जो ले आये हैं किनारों पर ,भँवर के उन तूफानों को भी सलाम
ऐतबार  की कश्ती के उस मल्लाह को सलाम
मेहरबान हुई है ज़िन्दगी ,इसे फूलों सा सँभालो
जो सुख दे आँखों को और फिजां को भी महका दे
एक धागे का साथ जरुरी है
जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े 

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

समय गढ़ रहा है

अभी वक्त नहीं है ,अभी ख्वाबों को रख ताक पर
समय गढ़ रहा है ,रख के तुझको ही चाक पर

ख्वाब होते हैं ज़िन्दगी की तरह
घूँट-घूँट पी कर सँभाले हुए
वजह जीने की बन कर दिन-रात पाले हुए

वक्त की ये अदा है,
देता है कभी कड़वी घुट्टियाँ भी
अभी लौटो तुम अपने घरों को
अभी तुम सबब बनना किसी गरीब के निवाले का ,
झुकते कन्धों के सहारे का ,किसी बीमार की सेवा का
अपनी जड़ों को पानी देना
अपनी प्यास को रवानी देना
हौसले को कहानी देना

कुदरत सिखलाती है अपने ही ढंग से
अभी वक्त है मनन का , तपन का , सृजन का
बची इन्सानियत तो बचेंगे हम भी
वक्त आयेगा खिल उठेंगे फूल ख्वाबों के भी
लहलहायेंगे दिल ,मुस्करायेंगे फूल बूटे पे समय की शाख पर

अभी वक्त नहीं है ,अभी ख्वाबों को रख ताक पर
समय गढ़ रहा है ,रख के तुझको ही चाक पर

ताक =ऊपर की शेल्फ
चाक =जिस पर कुम्हार बर्तन गढ़ता है