सोमवार, 27 अगस्त 2012

दर्द तो है पर कज़ा नहीं है

जीवन कोई सज़ा नहीं है 
दर्द तो है पर कज़ा नहीं है 

तेरे साथ है दुनिया मुट्ठी में 
वरना कोई मज़ा नहीं है 

कितनी कर लीं हमने तदबीरें 
अपना कोई सगा नहीं है 

भट्ठी में तपता हर कोई 
फिर भी देखो जगा नहीं है 

सारी राहें रौशन उस से 
कहाँ भला वो खड़ा नहीं है 

मन है हमारे विचारों के बस में 
चेहरे पर क्या जड़ा नहीं है 

जीवन कोई सज़ा नहीं है 
दर्द तो है पर कज़ा नहीं है 

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

कहते थोड़ा आराम है न

जिस्म की केंचुल उतर भी जाये 
बसा है रावण तो तेरी नस नस में 
सूँघ सूँघ कर इश्क है करता  
अपना ही रूप तू जाने न 

आराम है उसकी गोदी में 
खुल जातीं आँखें थपकी से 
परम-पिता के हाथों में 
ये कैसा विश्राम है न 

निकल पड़े हैं सफ़र धूप के
छाया है अपने अन्दर ही 
टुकड़ों में हैं धूप पकड़ते   
कहते थोड़ा आराम है न 

वो सागर और मैं बूँद सा 
बरस है जाता वो मेघ सा 
जल थल होता मन अँगना 
मेरी उसकी हस्ती एक है न  

रविवार, 5 अगस्त 2012

शक्ल किसी दोस्त की

वक्त को जब मेहरबान होना होता है
वो कर लेता है अख्तियार शक्ल किसी दोस्त की 
खिलने लगते हैं फूल , महकने लगतीं है फिज़ाएँ
बदल जाते हैं मायने ज़िन्दगी के

मुहब्बत ही तो वो शय है , जो भरती रँग ज़िन्दगी में 
मौत आती भी हो दबे पाँव तो
ये चकमा दे दे , किसी जादू या इबादत सी
 
 गद्य भी पद्य में बदल जाता है
सुर-ताल मिले न मिले , ज़िन्दगी के साज पर
आना पड़ता है रूह को , घड़ी दो घड़ी के लिए

चाँदनी रात दूर नहीं है , हम सितारों को लाये बैठे हैं
हर सूरत में ढूँढते हैं किसी दोस्त को
शम्मा दिल की जले तो ज़िन्दगी महफ़िल सी रौशन हो जाए