ये घर मुझे बूढ़े होते हुए देखेगा
पेड़-पौधे , दर-ओ-दीवार मेरी कहानी कहेंगे
किस-किस ख़ासियत से नवाज़ा था रब ने मुझको
किस-किस ख़ामी ने मुझे घेरा था
मेरी मुस्कराहटें भी देखीं इसने , साथ-साथ खिलखिलाया ये भी
मेरी आहें भी सुनीं इसने
तनहा दिल की कराहें भी देखीं इसने
ये वाक़िफ़ है मेरी रग-रग से
उम्र फैलायेगी जब आँचल अपना
बरस इक-इक कर पत्तों की तरह झड़ जायेंगे
अहसास क्या कभी मर पायेंगे
धूप ,छाँव ,नमी , सहरा की ज़ुबानी
मेरी उम्र लिक्खी किसने
ऐ ज़िन्दगी बताओ तो ज़रा ,
आग में क्या-क्या स्वाहा होगा
ये घर मुझे बूढ़े होते हुए देखेगा