शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

गाँव

मेरी यादों में गाँव , मेरे सपनों में गाँव 

बचपन की सोंधी मिट्टी सा महकता मेरा गाँव 

अलगनी पे टंगी जैसे मेरी छाँव 


ड्योढ़ी में बैठे पिता , चाचा , मेहमान 

दालान में बँधे ऊँठ ,घोड़ा और गाय-भैंसें 

अन्दर के आँगन में गूँजती दादी के चरखे की धुन 

याद आते भाई-बहनों के संग गुजरे बचपन के दिन 


एक दायरे में सिमटे कच्चे-पक्के से घर 

वो कुआँ ,वो छोटी सी नहर और रहट से बहता पानी 

हर खेत अपना , हरियाली अपनी 

वो आम वो जामुन के पेड़ और ठण्डी सी छाँव 


वो न्यारी सी गाँव की चौपाल 

वाट्स एप , फ़ेसबुक की दुनिया से भी प्यारी 

दूर-सँचार का सशक्त माध्यम 

अपना मनोरंजन का साधन , अपनी महफ़िल 


वो आदर-अदब के सारे संस्कार 

ज़मीं से जुड़ी अपनी रिश्तों की तार 

घर थे कच्चे , रिश्ते थे पक्के 

मिट्टी की महक तो है आज भी बरकरार 


क़स्बों-शहरों में तब्दील हो गये सारे गाँव

पगडंडियाँ घुल गईं कोलतार की सड़कों में 

मगर मेरी यादों के नक़्शे पर अब भी है क़ायम मेरा गाँव

अलगनी पे टंगी जैसे मेरी छाँव