रविवार, 21 जुलाई 2019

जीवन की वेदी पे सब कुछ हवन है

साथ-साथ वक्त बिताना, मिलना-मिलाना अच्छा लगता है 
दुनिया के रँगों में रँग-रँग जाना अच्छा लगता है 

धीरे से जानोगे , धीरे से समझोगे 
बिना मक्सद के कोई किसी से नहीं है मिलता 
धीरे-धीरे खुलेगी कलई रिश्तों की , दोस्तों की 
गरज हो तो सिर पे बिठायेगी दुनिया 
ज़र्रे-ज़र्रे में जमीं पे गिराना ,
दुनिया को अच्छा लगता है 

मन ही है मिट्ठू , मन ही है बौना 
मन ही है ख्वाहिशों की चादर , अपना बिछौना 
मन ही है मिट्टी , मन ही है सोना 
इक अंधी दौड़ का राही है ये 
कैसे बतायें खोना न खोना 
इक नँगा सच है जिस्म लपेटे 
मन ही है अद्धा-पव्वा , मन ही है सागर सलोना 
मन के रँगों में रँग-रँग जाना अच्छा लगता है 

मन को सँभालो , दुनिया है मुट्ठी में 
कोई देखे न देखे , जाने न जाने 
तेरा सब्र ही है तेरी मस्ती 
दुनिया की भीड़ से अलग तेरी बस्ती 
आया कोई तो गले से लगा लो 
न आया तो रंज नहीं है 
राहों से अपना कोई गिला न 
जीवन की वेदी पे सब कुछ हवन है 
जीवन ही मुस्कराये , चमन में खुशबू-खुशबू होना ,
अच्छा लगता है 

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

डॉक्टर

होता है दूसरा खुदा तो डॉक्टर भी 
जो बदल देता है बद से बदतर होते हुए हालात को भी 
लिखता है खुशियाँ , गम की रात में होता है उजाले की किरण सा 
पोंछता है आँसू , बाँटता है मुस्कानें 
लिखता है तकदीर इक बार फिर से 

आदमी जी रहा है जो साँसों का कर्ज़ है 
चोट-चपेट है या फिर कोई मर्ज़ है 
कौन समझेगा सीने में जो कोई दर्द है 
हाँ वो मसीहा है जो करता है वो सब ,
जो आदमी के हक़ में है 

हाँ वो दूसरा खुदा है 
जो लिखता है तकदीरें इक बार फिर से 
अपनी तदबीरों से