मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

सलवट-सलवट चेहरा


झुर्री-झुर्री हाथ हुए हैं ,सलवट-सलवट चेहरा 

खो ही गया वो नन्हा बच्चा,

बड़ा हुआ था पहन के जो 

अरमानों का सेहरा 


एक-एक कर कहाँ गये वो उम्र के सारे चोंचले

रहे न काम के , बदला रंग-ढंग वक्त का चेहरा-मोहरा 


आ ही गए हैं यहाँ तलक तो 

हार के भी हम जीते समझो 

बतियाता है कानों में मेरे 

वही सलोना चेहरा 


भरी दोपहरी सर पर गुजरी 

फिर भी देखो सीना नम है 

यही हमारा दम-खम है 

राज यही है गहरा 


रविवार, 30 मार्च 2025

दरो-दीवार बोलते ही रहे

दरो-दीवार बोलते ही रहे 

हमने कान ही  रखे 

सखी-सहेलियों के प्यार ने खींचा भी बहुत 

हमने ही मुँह फेर लिया 

चलना आगे है तो पीछे मुड़ के क्या देखें 


जो राह हो महफ़ूज़ अक़्लमन्दी है उसी पर चलना 

हर ठोकर पे हँस के सँभाल लें जो हाथ हमें 

उनका साथ ही दौलत है हमारी 


अब ये हाथ बूढ़े हो चले हैं 

उम्र का ये ही हश्र होना था 

आहिस्ता-आहिस्ता दस्तक देती रही 

और हम अनसुनी करते ही रहे 


दिल के फ़ैसलों पर दिमाग भारी है 

कुदरत के साथ क़िस्मत की भी साझेदारी है  

सखी सहेलियाँ , वो अपनी सी डगर , जाने-पहचाने रास्ते करते रहे सरगोशियाँ दिल में 

मगर हम मुँह फेरे चलते ही रहे 

हमने कान ही  रखे 

 

शनिवार, 15 मार्च 2025

दिल बाग-बाग है

दिल बाग-बाग है 

घर बाग-बाग है 

आने से तुम्हारे ये फ़िज़ाँ सब्ज़-बाग है 


दिल की भाषा दिल ही समझता है 

फूल खिलते हैं तो दिल गुनगुनाता है ,आँखें मुस्कुराती हैं 

आने से तुम्हारे ये जहाँ ख़्वाब-ख़्वाब है 


लौट आये हैं वही दिन लड़कपन के 

भूले-बिसरे वही नग़मे हैं हर मन के , अपनेपन के 

आने से तुम्हारे अँगना में उतरा महताब है 


तुम  कर चले भी गये 

वक्त गुजरा कि उड़ा , खबर ही नहीं 

पलक झपकी तो जाना कि मुठ्ठी में बस इतना सा ही असबाब है