दिल बाग-बाग है
घर बाग-बाग है
आने से तुम्हारे ये फ़िज़ाँ सब्ज़-बाग है
दिल की भाषा दिल ही समझता है
फूल खिलते हैं तो दिल गुनगुनाता है ,आँखें मुस्कुराती हैं
आने से तुम्हारे ये जहाँ ख़्वाब-ख़्वाब है
लौट आये हैं वही दिन लड़कपन के
भूले-बिसरे वही नग़मे हैं हर मन के , अपनेपन के
आने से तुम्हारे अँगना में उतरा महताब है
तुम आ कर चले भी गये
वक्त गुजरा कि उड़ा , खबर ही नहीं
पलक झपकी तो जाना कि मुठ्ठी में बस इतना सा ही असबाब है
बेहद खूबसूरत रचना पेश की है!
जवाब देंहटाएंबड़े दिनों बाद ब्लॉग पे आनेका मौक़ा मिला!