वो कुछ दिन रहे , रौनक रही
घर चहकता रहा ,ज़र्रा-ज़र्रा महकता रहा
न दिन की खबर रही न शाम की
बहारों का ही जलवा रहा
जाने से उनके कुछ दिन , दिल अनमना सा रहा
कहाँ मुमकिन है तगादा करना
जाना ज़रूरी ही रहा
हमें फख्र है जिसपे , वो आसमाँ उन्हें बुलाता ही रहा
हमने कब मौसमों से किये दिए रौशन
अपनों ने डाल दिया डेरा
दिल की बस्ती में ,फिर उजाला ही उजाला सा रहा