सोमवार, 17 जनवरी 2022

रौनक रही

 वो कुछ दिन रहे , रौनक रही 

घर चहकता रहा ,ज़र्रा-ज़र्रा महकता रहा 


न दिन की खबर रही न शाम की 

बहारों का ही जलवा रहा 

जाने से उनके कुछ दिन , दिल अनमना सा रहा 


कहाँ मुमकिन है तगादा करना 

जाना ज़रूरी ही रहा 

हमें फख्र है जिसपे , वो आसमाँ उन्हें बुलाता ही रहा 


हमने कब मौसमों से किये दिए रौशन 

अपनों ने डाल दिया डेरा  

दिल की बस्ती में ,फिर उजाला ही उजाला सा रहा 




6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२०-०१ -२०२२ ) को
    'नवजात अर्चियाँ'(चर्चा अंक-४३१५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. गहन एहसासों से महकाती अभिव्यक्ति।
    विरह में भी समर्पण के उत्कृष्ट भाव।
    अप्रतिम सृजन।

    जवाब देंहटाएं

आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है