शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

समय गढ़ रहा है

अभी वक्त नहीं है ,अभी ख्वाबों को रख ताक पर
समय गढ़ रहा है ,रख के तुझको ही चाक पर

ख्वाब होते हैं ज़िन्दगी की तरह
घूँट-घूँट पी कर सँभाले हुए
वजह जीने की बन कर दिन-रात पाले हुए

वक्त की ये अदा है,
देता है कभी कड़वी घुट्टियाँ भी
अभी लौटो तुम अपने घरों को
अभी तुम सबब बनना किसी गरीब के निवाले का ,
झुकते कन्धों के सहारे का ,किसी बीमार की सेवा का
अपनी जड़ों को पानी देना
अपनी प्यास को रवानी देना
हौसले को कहानी देना

कुदरत सिखलाती है अपने ही ढंग से
अभी वक्त है मनन का , तपन का , सृजन का
बची इन्सानियत तो बचेंगे हम भी
वक्त आयेगा खिल उठेंगे फूल ख्वाबों के भी
लहलहायेंगे दिल ,मुस्करायेंगे फूल बूटे पे समय की शाख पर

अभी वक्त नहीं है ,अभी ख्वाबों को रख ताक पर
समय गढ़ रहा है ,रख के तुझको ही चाक पर

ताक =ऊपर की शेल्फ
चाक =जिस पर कुम्हार बर्तन गढ़ता है

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