कौन जाने , कौन कितना अकेला है
भीड़ में भी तन्हां है, जिसके आस-पास रौशनी का मेला है
इतनी चकाचौंध थी तो नाक के नीचे इतना अँधेरा क्यों ?
सलोने से चेहरों की उदास दास्तानें
बुलन्दी पे पहुँचे हुए सितारों की टूटन
वो अकेलापन , वो घुटन
क्यों उठा लेता है मन अनचीन्हा ?
सवाल कई हैं , जवाब एक नहीं
मासूमियत गई पानी भरने
कँक्रीट के जँगल में दिल नहीं बसते
उसके दिल से उठता धुआँ किसी को न दिखा
ज़िन्दगी एक न्यामत है
कहती है कि मैं बूँद हूँ बेशक ,
मगर सागर का अस्तित्व मुझसे है
आसमान रो उठा है
एक बार जो रूठी ज़िन्दगी , फिर वो सींची न गई
फिर वो सींची न गई
भीड़ में भी तन्हां है, जिसके आस-पास रौशनी का मेला है
इतनी चकाचौंध थी तो नाक के नीचे इतना अँधेरा क्यों ?
सलोने से चेहरों की उदास दास्तानें
बुलन्दी पे पहुँचे हुए सितारों की टूटन
वो अकेलापन , वो घुटन
क्यों उठा लेता है मन अनचीन्हा ?
सवाल कई हैं , जवाब एक नहीं
मासूमियत गई पानी भरने
कँक्रीट के जँगल में दिल नहीं बसते
उसके दिल से उठता धुआँ किसी को न दिखा
ज़िन्दगी एक न्यामत है
कहती है कि मैं बूँद हूँ बेशक ,
मगर सागर का अस्तित्व मुझसे है
आसमान रो उठा है
एक बार जो रूठी ज़िन्दगी , फिर वो सींची न गई
फिर वो सींची न गई
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