जिसको दिखती ही नहीं आगे चलने की डगर
थोड़ा आसान तो हो जाये उसकी साँसों का सफर
कौन जाने किसकी पेशानी पे क्या-क्या लिक्खा
जो भी देते हैं लौट आता है कई गुना हो कर
जिसको हम ढूँढ़ते हैं इबादत-गाहों में
वो बसता है नेकी में ,अपने बन्दों में आता है नजर
लोग करते हैं दया ,दान और करुणा
मजबूरी ,धर्म ,अन्ध-विष्वास या जोर-जबर्दस्ती से डर कर
तेरे अँजुरि भर देने से ,बदल सकती है किसी की दुनिया
जो तू रख सके तो रख सबकी ही खबर
ये महल , अट्टालिकायें ,सोने सी लँका
अधूरी हैं ,जो नहीं है किन्हीं दुआओं का असर
मैं तो सिर्फ आईना दिखाऊँगी
जो तेरा सोया ज़मीर जगे तो सोच , ठहर
कभी किसी के दर्द का हिस्सा तो बन ,
किसी की मुस्कराहट का कारण तो बन
तेरे आड़े वक़्त में यही पल आ खड़े होंगे ,तेरी ढाल बन कर
शारदा अरोरा
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 11 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंकभी किसी के दर्द का हिस्सा तो बन ,
जवाब देंहटाएंकिसी की मुस्कराहट का कारण तो बन
तेरे आड़े वक़्त में यही पल आ खड़े होंगे ,तेरी ढाल बन कर
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर ...लाजवाब।
Sabhi ka bahut bahut dhanyvad
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