गुरुवार, 27 अगस्त 2020

सुशान्त सिंह और मौत की आहट

 


जब सुबह उठने की कोई वजह नहीं मिलती 
जब सिर पर कोई छाँव नहीं होती 
हर सुबह कोई कैसे उठे 

ये कैसे चेहरे इकट्ठे किये थे आस-पास 
वक्ते-जरुरत कोई एक भी आया न सँभालने 
और मौत ने ज़िन्दगी से साँठ-गाँठ कर ली 

सुख में तो सभी बन जाते हैं अपने 
साथ वो है जो दुख में छोड़े न कभी 
इतना आसान नहीं होता दुनिया से चले जाना 

तुम्हारी नैतिक ज़िम्मेदारी थी ,वो प्यार था तुम्हारा 
कोई बीमार है तो चारासाज बनो 
अपनी ज़िन्दगी को कोई मतलब , कोई आवाज तो दो 

वो सितारा था दुनिया को रौशनी देता 
पलट के सो गया कभी न उठने के लिये 
रूठ गया अपनी ही ज़िन्दगी से , किसे आवाज दें  

आदमी टूट जाता है इश्क के बेमौत मरने से 
किस ज़मीन पर खड़े हो ,सवाल उठेंगे 
ये बाज़ी तुम हार गये हो , अब जीतने में क्या रक्खा है 

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