जब सिर पर कोई छाँव नहीं होती
हर सुबह कोई कैसे उठे
ये कैसे चेहरे इकट्ठे किये थे आस-पास
वक्ते-जरुरत कोई एक भी आया न सँभालने
और मौत ने ज़िन्दगी से साँठ-गाँठ कर ली
सुख में तो सभी बन जाते हैं अपने
साथ वो है जो दुख में छोड़े न कभी
इतना आसान नहीं होता दुनिया से चले जाना
तुम्हारी नैतिक ज़िम्मेदारी थी ,वो प्यार था तुम्हारा
कोई बीमार है तो चारासाज बनो
अपनी ज़िन्दगी को कोई मतलब , कोई आवाज तो दो
वो सितारा था दुनिया को रौशनी देता
पलट के सो गया कभी न उठने के लिये
रूठ गया अपनी ही ज़िन्दगी से , किसे आवाज दें
आदमी टूट जाता है इश्क के बेमौत मरने से
किस ज़मीन पर खड़े हो ,सवाल उठेंगे
ये बाज़ी तुम हार गये हो , अब जीतने में क्या रक्खा है
सु न्दर सृ जन
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