४२ साल की बेहोशी के बाद हमेशा के लिये सो गईं अरुणा शानबाग , मुठ्ठी भर हड्डियों में तब्दील हुईं वो ख़ूबसूरत चेहरे की मालकिन अरुणा , एक टीस सी उठती है ,कुछ हर्फों में उतरती है. ...
वो एक दिन , वो एक कर्म ही काफी है
मेरी हस्ती को मिटा देने के लिये
तेरी ये मिल्कीयत मेरे ज़मीर पे भारी है
के हम भी सीने में दिल रखते हैं
जुबाँ खामोश है , फ़िज़ाँ भारी है
तिल-तिल मरता हुआ मिट गया कोई
मिट्टी में मिल गई सारी खुद्दारी है
जो रँग भरते हैं गुलशन में
मिट गए कब से वफ़ा , दीन-ईमान
चुरा लिये हैं किसी ने मेरे सुबह-ओ-शाम
चन्द साँसों का क़र्ज़ बाकी है
ज़िन्दगी ने ये रात भी गुजारी है
आईना किसको दिखाऊँ
धड़कनों की भी उधारी है
देखे तो तुझे भी शर्म आ जाये
के तेरी करतूत ने ले ली मेरी उम्र सारी है
वो एक दिन , वो एक कर्म ही काफी है
मेरी हस्ती को मिटा देने के लिये
तेरी ये मिल्कीयत मेरे ज़मीर पे भारी है
के हम भी सीने में दिल रखते हैं
जुबाँ खामोश है , फ़िज़ाँ भारी है
तिल-तिल मरता हुआ मिट गया कोई
मिट्टी में मिल गई सारी खुद्दारी है
जो रँग भरते हैं गुलशन में
मिट गए कब से वफ़ा , दीन-ईमान
चुरा लिये हैं किसी ने मेरे सुबह-ओ-शाम
चन्द साँसों का क़र्ज़ बाकी है
ज़िन्दगी ने ये रात भी गुजारी है
आईना किसको दिखाऊँ
धड़कनों की भी उधारी है
देखे तो तुझे भी शर्म आ जाये
के तेरी करतूत ने ले ली मेरी उम्र सारी है
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