एक माँ की नजर से....
मैंने बहुत चाहा कि
बनूँ वो रिश्ता ,ऐतबार का
वो छाँव आराम की
वो गोद चैन की
दुनिया से हताहत हो कर भी
पाओ जहाँ तुम ,वो बाड़ हिफाज़त की
कहीं कोई कमी न रहे
मेरी हीरे की कनी
गुमराह न हो जाना कभी
दुनिया लुभाती है बहुत
और रौंद के छोड़ जाती है वहीँ
रखना वो नजर , जो देख पाये ये सब भी
सबको देखना एक ही नजर से बेशक
मगर व्यवहार में सबको निभाना होगा
हर रिश्ते का क़र्ज़ चुकाना होगा
ऐतबार माँगने से नहीं मिलता कभी
ऐतबार कमाना पड़ता है
गुजरे हैं कभी हम भी उसी राह से
धूप कितनी भी हो ,अपने हिस्से की छाया में बसर करना
हो सके तो दूसरों के लिये भी छाया बुनना
हाँ , रखना तुम ऊँचे इरादों पर अपनी नजर
माँ की दुआओं ने बुना है आसमान
तुम आ के उड़ानें भरना
मैंने बहुत चाहा कि
बनूँ वो रिश्ता ,ऐतबार का
वो छाँव आराम की
वो गोद चैन की
दुनिया से हताहत हो कर भी
पाओ जहाँ तुम ,वो बाड़ हिफाज़त की
कहीं कोई कमी न रहे
मेरी हीरे की कनी
गुमराह न हो जाना कभी
दुनिया लुभाती है बहुत
और रौंद के छोड़ जाती है वहीँ
रखना वो नजर , जो देख पाये ये सब भी
सबको देखना एक ही नजर से बेशक
मगर व्यवहार में सबको निभाना होगा
हर रिश्ते का क़र्ज़ चुकाना होगा
ऐतबार माँगने से नहीं मिलता कभी
ऐतबार कमाना पड़ता है
गुजरे हैं कभी हम भी उसी राह से
धूप कितनी भी हो ,अपने हिस्से की छाया में बसर करना
हो सके तो दूसरों के लिये भी छाया बुनना
हाँ , रखना तुम ऊँचे इरादों पर अपनी नजर
माँ की दुआओं ने बुना है आसमान
तुम आ के उड़ानें भरना
बहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : तेरे रूप अनेक
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30 - 04 - 2015 को चर्चा मंच चर्चा - 1961 { मौसम ने करवट बदली } में पर दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वाह, बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमाँ की चाह, उसकी दुआ ऐसी ही होती है अपने बच्चे के लिए ...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएं