तेरी छोटी बहना के कमरे की दीवार पर
तेरी बनाई हुईं तितलियाँ
पँखे की हवा में पँख हिलाने लगतीं हैं
जैसे उड़ रहीं हों किसी गन्तव्य की ओर
बदल लेते हैं हम घर अक्सर
जैसे चुरा रहे हों नजरें खुद से
मछली ,तितली और फूलों को देखा है अक्सर मन के कैनवस पर
आसाँ है इन्हें बना पाना , तैरें उड़ें और फूल खिलें
कुछ यादें रँग भर लेतीं हैं , और कोई कुशल चितेरा बन जाता है
न जाने कितनी ही चीजें तेरे अहसास में गुम हैं
तू उठ कर चली गई है
मगर हम संजोये हुये हैं सब कुछ ऐसे
जैसे हर सलवट को सजाये हैं
तेरी नर्म उँगलियों के अहसास को गले से लगाये हैं
जब जी चाहे बुला लेते हैं तुझे यादों में
मेरी आस की तितलियाँ भी हौले से पँख हिलाने लगतीं हैं
और फूल खिलने लगते हैं
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