सोमवार, 17 अगस्त 2009

मैं कह न पाऊँ अगर ......


मैं कह पाऊँ अगर ......
मेरी मूक जुबाँ समझ लेना
मेरी दुआओं का असर समझ लेना
तेरे आस-पास मन्डराता हुआ , मेरा प्यार जान लेना
तुम नज़रों में बाँध लेते हो
कुछ यूँ वक़्त थाम लेते हो
अपने बारे में भी कुछ जानते हो !
कहने सुनने से बहुत आगे
नज़रों का सँसार हुआ करता है
दिल की जुबानों को तुम समझ लेना
मैं कह पाऊँ अगर .........

3 टिप्‍पणियां:

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  2. नज़रों का सँसार हुआ करता है
    दिल की जुबानों को तुम समझ लेना

    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति बधाई ।

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  3. दिल की जुबानों को तुम समझ लेना...वाह...
    बेहद खूबसूरत रचना...बधाई शारदा जी .
    नीरज

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