क्या कहिए अब इस हालत में ,
अब कौन समझने वाला है
कश्ती है बीच समन्दर में
तूफाँ से पड़ा यूँ पाला है
हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी
हालात ने हमको ढाला है
कह देतीं आँखें सब कुछ ही
जुबाँ पर बेशक इक ताला है
लौट आते परिन्दे जा जा कर
घर में कोई चाहने वाला है
बाँधने से नहीं बँधता कोई
आशना क्या गड़बड़ झाला है
ज़ेहन में उग आते काँटे
ये रोग हमारा पाला है
घूम आते हैं अक्सर हम भी
वक्त की तलियों में छाला है
नजरें फेरे हम जाप रहे
बाँधे आसों की माला है
अब कौन समझने वाला है
कश्ती है बीच समन्दर में
तूफाँ से पड़ा यूँ पाला है
हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी
हालात ने हमको ढाला है
कह देतीं आँखें सब कुछ ही
जुबाँ पर बेशक इक ताला है
लौट आते परिन्दे जा जा कर
घर में कोई चाहने वाला है
बाँधने से नहीं बँधता कोई
आशना क्या गड़बड़ झाला है
ज़ेहन में उग आते काँटे
ये रोग हमारा पाला है
घूम आते हैं अक्सर हम भी
वक्त की तलियों में छाला है
नजरें फेरे हम जाप रहे
बाँधे आसों की माला है
एक -एक शब्द में जीवन का मर्म छुपा है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट.
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना
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