बुधवार, 17 दिसंबर 2014

झुलसा हुआ चमन है

पेशावर में इतना बुरा हादसा , कितने बच्चे बलि चढ़ गये , कितने ज़ख्मी हो गये।  कहते हैं कि बचपन में खाई हुई दहशत ताउम्र प्रभावी रहती है। इसका असर व्यक्तित्व पर बड़ा गहरा होता है। कुछ कहते नहीं बनता ,न ही कोई शब्द हैं सान्त्वना के लिए  ,भर्तस्ना के लिए तो जो कह दें कम है।

सारे परिन्दे बागी हो गये 
चमन की खुशिओं के खून के प्यासे हो गये 
कर दिया दफ़न भविष्य 

एक सन्नाटा सा पसरा है सफ़्हे पर 
ज़ेहन में उंडेला है खून 
मातम करता हुआ वक़्त खड़ा है 
ममता करती वैण 
ज़ख्म अभी गर्म-गर्म है 

हर बीज पेड़ बन के फलता है 
हर पटाखा कल बम मिसाइल होगा 
झुलस जायेंगे पर,
जमीं पर भी न अपना घर होगा 

नन्हे मासूम अँकुर ही क्यों बनते हैं निशाना ,
इधर भी , उधर भी  

अल्लाह तो अपने बन्दों की हिफ़ाजत करता है 
ये कौन सा मजहब है 
चुन-चुन के जो मारे 
कौन सी जन्नत जाओगे ,
देखो तो अपने आगे ,तुमने फूल बोये या काँटे 
सारे परिन्दे बागी हो गये ,
झुलसा हुआ चमन है , दुखड़ा किस से अपना बाँटे 



6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-12-2014 को चर्चा मंच पर क्रूरता का चरम {चर्चा - 1831 } में दिया गया है
    आभार

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  2. और वो बीज पेड़ बनने से पहले जला दिए गए… :(

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  3. बहुत दुखद घटना..अच्‍छी प्रस्‍तुति‍

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  4. सारे परिन्दे बागी हो गये ,
    झुलसा हुआ चमन है , दुखड़ा किस से अपना बाँटे।।।
    आखिर वे अभागे माँ-बाप अपना दुःख किसको कहें ?

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है