कली को क्या मालूम ,मसल देगा कोई भँवरा
जुदा हो गई डाली से वो ,खिलने से पहले ही
आबो-हवा चमन की ,कुछ इस तरह बदली
हो गई नेकी की तस्वीर भी धुँधली
सोते-जागते माँ की छाया में रही
छूटते ही हाथ माँ का ,सारी दुनिया पराई हो गई
मोतियों की माला पहनना , सजना-सँवरना समारोहों में
बस अभी तो इतना सा ही मतलब समझा था ज़िन्दगी का लाडली ने
गुड़ियों से खेलने की उम्र में इस भयानक सच से सामना
पशु से भी बदतर वासना का है विकृत अन्जाम क्या
आदमी के रूप में भेड़िया है आ गया
बहुरुपिया हम सबके बीच आदमी ही बन कर रहा
मसल दी गई नन्हीं कली
हमेशा के लिये वो सो गई रोते-रोते
न धरती ही फटी न आकाश ही आया मदद के लिये
हमारे दिलों से उठ रहा है धुआँ
मर रही इन्सानियत
माँ के अँगना की चिरैय्या , तेरा वज़ूद खतरे में है
दुर्गन्ध आ रही है
मर रही इन्सानियत
जवाब देंहटाएंमाँ के अँगना की चिरैय्या , तेरा वज़ूद खतरे में है
दुर्गन्ध आ रही है
………सच कहा आपने इन्सानियत मर रही है। .......... हैवानियत हावी हो रही है इंसानों पर.…।
गहन चिंतनशील प्रस्तुति
आज के हालात का बहुत सटीक चित्रण..सच में इंसानियत पर हैवानियत का राज हो रहा है..लाज़वाब प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंहकीकत से रूबरू कराती रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : इच्छा मृत्यु बनाम संभावित मृत्यु की जानकारी