मंगलवार, 19 मई 2009

शुक्रिया , अमर उजाला


शुक्रिया , अमर उजाला , आज ' कोई मन गिरा कर तो नहीं बैठा है ' को प्रकाशित करने के लिए | ब्लॉग से ये सन्देश शायद काफी लोगों तक नहीं पहुँचा , हाँ अमर उजाला की आवाज इसे उत्तर-प्रदेश व उत्तराखंड के अधिकाँश घरों तक पहुँचाने में सक्षम है , ऐसा विश्वास है | और हाँ , आपकी निष्पक्षता का भी यकीन हो चला है , वैसे तो अपने खुदा पर ही मेरा विश्वास दृढ है कि वो जिस बात को दुनिया के सामने लाना चाहेगा उसको कोई रोक नहीं सकेगा , इसीलिये एक सब्र जैसी चीज मन ने पाल रखी है | मेरी रची वो दूसरी ही कविता थी जिसे आपने 'आखर ' में प्रकाशित किया था |


२००७ में ही जब मैं अपने इकलौते बड़े भाई जी के घर गयी थी , उन्हीं दिनों कविता लिखना शुरू किया था , तो बड़ा मन होता था कि कोई सुने भी , खास कर अपने भाई-बहन तो सुनें | उन्हें जब मैंने कवितायें सुनाईं , पढ़वाईं , उन्हों ने कुछ की तारीफ़ की , कुछ में फेर-बदल करने को कहा और फिर ये कहा कि ' शारदा , कोई अगर कविता सुनाने को न कहे तो वहाँ कविता कभी मत सुनाना '| बात तो उन्होंने जायज कही थी पर मन कहीं छन्न से टूट गया था , कवि नाम के जीव की दुनिया में इतनी बेकद्री है ! ' जहाँ न पहुँचे रवि , वहाँ पहुँचे कवि ' वाली उक्ति याद आई , उस रात नींद आँखों से दूर चली गई थी , आँसू आँख में आया पर गाल पर लुढ़कने से इन्कार करने लगा , मेरे प्यारे भाई जी की हर बात को सकारात्मक और शिक्षा-प्रद ही लेना है , ऐसा तय कर लिया | उस रात एक कविता का जन्म हुआ जिसे ' कवि ' शीर्षक से हिंद-युग्म के मई माह के पौड-कास्ट कवि-सम्मलेन में मेरी ही आवाज में सुन सकेंगे |


इस तरह मैं हर नकारात्मक बात से भी जितना सकारात्मक उठा सकती हूँ , उठा लेती हूँ , जैसे कोई ऐसी रासायनिक इक्वेशन हो जिसका फल हमेशा जोड़ में ही आना है | बस ये भी जिन्दगी जीने का एक भेद ही है |

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