गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

दवाओं को पीते रहे


हादसे क्या जान बूझ कर किए जाते कभी


जायेंगे ये किस हद तक , क्या सोच पाते कभी


अपने लिए ख़ुद ही , कोई कब्र खोदता नहीं


दूसरे के दर्द में , अपना दर्द खोजता नहीं


मत सेंकना तू रोटियाँ , आग जलती है कहीं


लकडियाँ हैं दूसरे की , तूने आगे खिसकाई कहीं


है दर्द उसके सीने में , नहीं है छलावा कोई


इन्सानियत की आँख से , नहीं होता दिखावा कोई


जब ख़ुद पर बीतती है , ठगे से ढूँढते हैं कोई देवदार कहीं


ये क्या लाया है , कर देगा तुझे भी लहुलुहान , झाड़-झंखाड़ कहीं


इन्सानियत के नाम पर , है इंसानियत शर्मिन्दा कहीं


दवाओं को पीते रहे , दुआओं को भूल आए कहीं


7 टिप्‍पणियां:

  1. दवा न पीऐं सिर्फ गजलें लिखती रहें।
    पसंद आई।

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  2. दवाओं को पीते रहे , दुआओं को भूल आए कहीं
    बहुत सही सुन्दर कहा ..

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  3. भावनाप्रद संदेश देती रचना... सुन्दर लिखा है

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  4. ऊपर सभी टिप्पणियों को रिपोस्ट करना चाहता हूं.

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