मंगलवार, 11 नवंबर 2008

जीवन संग्राम


भ्रम में है तेरा अर्जुन सखा
आकर कोई राह सुझाओ मोहन
रिश्ते नाते रखो ताक पर
सखा धर्म निभाओ मोहन

कुरुक्षेत्र का मैदान , जीवन संग्राम
छल दल बल संग खड़ा सामने
गांडीव छूटा जाए हाथ से
युद्ध का बिगुल बजा नाद से
मुझको आके संभालो मोहन

काली घटा विषाद की छाई
मतिभ्रम मुझको बेडियाँ डाले
लडूं मैं ख़ुद से कैसे बताओ
क्या पाउँगा विद्रोह के पथ पर
कर्म योग सिखलाओ मोहन

सुख-दुख कैसे सम कर जानूं
मनोवेग को कैसे वश कर
जीवन पथ पर चल पाऊं
सारथि मेरा जन्मों से तू
आकर कोई राह दिखाओ मोहन

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