देखूँ तो जरा ,
मेरे क़दमों में तूने है क्या-क्या रक्खा
मेरी पेशानी पे है क्या-क्या लिक्खा
ऐ लेखनी तेरे क़दमों की धूल बनूँ
लो फिर मैंने कोई तमन्ना कर ली
वक़्त मिटा डाले चाहे जितना
दिल है के कोई सहारा माँगे
कहते हैं के तकदीर नहीं बदल सकता कोई
फिर ये जद्दो-जहद किस के लिए
रँग की दुनिया का कहर किस के लिए
फिर जो होना है तो होता रहे , झेल ले जिगर के साथ
ज़िन्दगी एक रवानी के सिवा कुछ भी नहीं
सिर्फ कोशिश भर नहीं है ज़िन्दगी
कौन जाने किसके पसीने ने वक़्त के सीने पर है क्या-क्या लिक्खा
मेरे क़दमों में तूने है क्या-क्या रक्खा
मेरी पेशानी पे है क्या-क्या लिक्खा
ऐ लेखनी तेरे क़दमों की धूल बनूँ
लो फिर मैंने कोई तमन्ना कर ली
वक़्त मिटा डाले चाहे जितना
दिल है के कोई सहारा माँगे
कहते हैं के तकदीर नहीं बदल सकता कोई
फिर ये जद्दो-जहद किस के लिए
रँग की दुनिया का कहर किस के लिए
फिर जो होना है तो होता रहे , झेल ले जिगर के साथ
ज़िन्दगी एक रवानी के सिवा कुछ भी नहीं
सिर्फ कोशिश भर नहीं है ज़िन्दगी
कौन जाने किसके पसीने ने वक़्त के सीने पर है क्या-क्या लिक्खा
ज़िन्दगी एक रवानी के सिवा कुछ भी नहीं
जवाब देंहटाएंसिर्फ कोशिश भर नहीं है ज़िन्दगी
कौन जाने किसके पसीने ने वक़्त के सीने पर है क्या-क्या लिक्खा
.. सच जिंदगी में कब क्या हो जाय कोई नहीं जानता। . जिंदगी को कोई नहीं समझ पाया है
..बहुत सुन्दर
वाह बहुत ही कमाल का है आपने लिखा ...सुन्दर भाव |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा आपने शारदाजी..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना.
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