वक़्त के साथ जब आदमी आगे बढ़ता है तो कोई दिन तो आता है जब पुराना सब कुछ छोड़ कर उसे सिर्फ आगे देखना होता है ; यहाँ तक कि वो घर भी जिसमें बचपन बीता ,यादों के हवाले हो जाता है ...
मेरे बचपन का घर छूटे जाता है
माँ-पापा की छत्र-छाया के अहसास का घर छूटे जाता है
भाई-बहनों के साथ का घर छूटे जाता है
यादों के अनगिनत लम्हे भी उतर आते हैं ज़ेहन में
कसैली यादें तो लिपट जातीं हैं मेरे वज़ूद को नीम करेले की तरह
दो बूँद आँसू ढुलक उठते हैं मेरे गालों पर
और मीठे लम्हे तो मुस्करा उठते हैं गाहे-बगाहे
लौट के आना बचपन का नामुमकिन है
और यादों से भुला पाना भी मुश्किल है
बचपन का खाया दूध-दही , मेरी रगों का खून सही
वो बेफिक्री-मस्ती का आलम , आज भी मेरी चाह वही
खन-खन बजने लगते हैं सिक्के बचपन की गुल्लक के
माँ का लाड़-दुलार , पापा की हिफाज़त , भाई-बहनों के साथ का अहसास
सखी-सहेलियों की आवा-जाही ,दादी चाचा-चाची के साथ उत्सव का सा माहौल
इन सबके बिना अधूरा सा मेरा वज़ूद
इसी घर में शैशव ने थी उँगली पकड़ी यौवन की
इसी घर की दहलीज़ के बाहर दुनिया बहुत अलग थी
वो बचपन की कौतुहल वाली आँख से दुनिया का परिचय
मैं आज जो कुछ भी हूँ , उसी बचपन की बदौलत
ये उजाले चलेंगे ताउम्र मेरे साथ-साथ
मेरी भी उम्र जियेगा ये घर मेरे साथ-साथ
मेरे बचपन का घर छूटे जाता है
माँ-पापा की छत्र-छाया के अहसास का घर छूटे जाता है
भाई-बहनों के साथ का घर छूटे जाता है
यादों के अनगिनत लम्हे भी उतर आते हैं ज़ेहन में
कसैली यादें तो लिपट जातीं हैं मेरे वज़ूद को नीम करेले की तरह
दो बूँद आँसू ढुलक उठते हैं मेरे गालों पर
और मीठे लम्हे तो मुस्करा उठते हैं गाहे-बगाहे
लौट के आना बचपन का नामुमकिन है
और यादों से भुला पाना भी मुश्किल है
बचपन का खाया दूध-दही , मेरी रगों का खून सही
वो बेफिक्री-मस्ती का आलम , आज भी मेरी चाह वही
खन-खन बजने लगते हैं सिक्के बचपन की गुल्लक के
माँ का लाड़-दुलार , पापा की हिफाज़त , भाई-बहनों के साथ का अहसास
सखी-सहेलियों की आवा-जाही ,दादी चाचा-चाची के साथ उत्सव का सा माहौल
इन सबके बिना अधूरा सा मेरा वज़ूद
इसी घर में शैशव ने थी उँगली पकड़ी यौवन की
इसी घर की दहलीज़ के बाहर दुनिया बहुत अलग थी
वो बचपन की कौतुहल वाली आँख से दुनिया का परिचय
मैं आज जो कुछ भी हूँ , उसी बचपन की बदौलत
ये उजाले चलेंगे ताउम्र मेरे साथ-साथ
मेरी भी उम्र जियेगा ये घर मेरे साथ-साथ
सुंदर भावाभिव्यक्ति...शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। किसको अच्छी नहीं लगती वो प्यारी बातें, वो पुरानी यादें।
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