वाट्स एप पर ग्रुप बना कर कॉलेज के वक्त के साथियों से मिलाने का काम किया एक मित्र ने , चालीस साल का लम्बा अन्तराल ...अब चेहरों को पहचानने की कशम-कश जारी है ...
हम वैसे ही न मिलेंगे ,
जैसे जुदा हुये थे
बरसों के फासले हैं ,
उम्र का भी है तकाज़ा
जादू सा किसने फेरा ,
बदलीं हैं सारी शक्लें
झाँकेगा वही चेहरा ,
पलकों पे है जो ठहरा
वक़्त की है ये आँख-मिचोली ,
पलटे हैं पन्ने यादों ने
दो कदम चले थे साथ ,
राहें बदल गईं थीं
ख़्वाबों का कारवाँ भी ,
हमें ले के गया किधर
बचपन की तरह छूटा ,
दौड़ा रगों में लेकिन
छेड़ा है हवाओं ने ,
फिर से वही फ़साना
किस चेहरे को किस से जोडूँ ,
यादों का मुँह मैं मोडूँ
हम वैसे ही न मिलेंगे ,
जैसे जुदा हुये थे
बरसों के फासले हैं ,
उम्र का भी है तकाज़ा
जादू सा किसने फेरा ,
बदलीं हैं सारी शक्लें
झाँकेगा वही चेहरा ,
पलकों पे है जो ठहरा
वक़्त की है ये आँख-मिचोली ,
पलटे हैं पन्ने यादों ने
दो कदम चले थे साथ ,
राहें बदल गईं थीं
ख़्वाबों का कारवाँ भी ,
हमें ले के गया किधर
बचपन की तरह छूटा ,
दौड़ा रगों में लेकिन
छेड़ा है हवाओं ने ,
फिर से वही फ़साना
किस चेहरे को किस से जोडूँ ,
यादों का मुँह मैं मोडूँ
४० साल बाद अचानक कोई मिले तो सच पहचानना मुश्किल होगा लेकिन जाने कितनी ही यादों में हम गोते लगते रहेंगे पता नहीं ..रोमांचकारी पल होंगे ..
जवाब देंहटाएंचलिए कुछ तो अच्छा हुआ ...
बहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : अपनों से लड़ना पड़ा मुझे