अज्ञान ,अशिक्षा ,अविवेक ने , मन पे रक्खी न लगाम रे
अपने ही हाथों अपनी ही दुनिया का ,कर डाला काम तमाम रे
चरस ,गाँजा ,सिगरेट ,शराब , दाँव पे तेरी सेहत रे
तन-मन धन सब होगा अर्पण , गड्ढे में तेरी जान रे
चुग जायेगी चिड़िया तेरा ,सारा खेत ये जान रे
गुजरा वक़्त नहीं है आता , भर नहीं पाते निशान रे
ज़मीर सदा धिक्कारेगा तुझको ,अपने चुरायेंगे आँख रे
पीढ़ियाँ रोयेंगी नाम को तेरे ,मिट्टी में तेरा मान रे
होते हैं नियम कायदे-कानून , समाज नहीं है जँगल रे
पहुँच गया है आदमी चाँद पे ,उलझा है किसमें तू नादान रे
अपने ही हाथों अपनी ही दुनिया का ,कर डाला काम तमाम रे
चरस ,गाँजा ,सिगरेट ,शराब , दाँव पे तेरी सेहत रे
तन-मन धन सब होगा अर्पण , गड्ढे में तेरी जान रे
चुग जायेगी चिड़िया तेरा ,सारा खेत ये जान रे
गुजरा वक़्त नहीं है आता , भर नहीं पाते निशान रे
ज़मीर सदा धिक्कारेगा तुझको ,अपने चुरायेंगे आँख रे
पीढ़ियाँ रोयेंगी नाम को तेरे ,मिट्टी में तेरा मान रे
होते हैं नियम कायदे-कानून , समाज नहीं है जँगल रे
पहुँच गया है आदमी चाँद पे ,उलझा है किसमें तू नादान रे
रक्षक ही बन बैठा जब भक्षक ,विष्वास का है ये खून रे
रिश्तों की खोद डाली जड़ें हैं ,ये तो बता ये जन्म तेरा ,आया है किस काम रे
बहुत बहुत सुंदर रचना। पढ़कर बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंजीवन के यथार्थ से जुड़ी पोस्ट.
जवाब देंहटाएं