ज़िन्दगी की उलझनें सुलझाते-सुलझाते धरा की न जाने कौन सी बात अम्बर को चुभ गई ...सीने की सारी नमी खत्म हो गई ...
माथे की लकीरें बोलें न
किस्मत के भेद वो खोलें न
तपती धरती और दरारें
रूखा सीना अम्बर का
आँख पनीली, प्यास है गहरी
टूटा दिल है धरती का
छोड़ आये हैं साहिल को
और लौटना नामुमकिन
कश्ती है बीच समन्दर में
और तैरना नामुमकिन
इन आती-जाती साँसों का
कोई तो मोल हुआ होता
माटी का दोष नहीं है
सोहनी के हिस्से में अक्सर
बीच भँवर विस्फोट हुआ
बहुत सुंदर प्रतुति..
जवाब देंहटाएंprathamprayaas.blogspot.in-