रविवार, 18 सितंबर 2011

चमकीला होता है अम्बर क्या

सूरज , ऐ चन्दा बता
वो दिन कैसा होता है
अरमान की बिंदिया माथे सजा
जब रोज सुबह कोई गाता है

चमकीला होता है अम्बर क्या
मेरी उम्मीदों से ज्यादा
वो लाली , वो गुन्जन
वो फूँक भला कौन भरता है

खिल उठते हैं फूल सभी
चिड़ियाँ भी गातीं मस्ती में
निशा के सँग सो जाते
वो समझ भला कौन भरता है

वो महक भला आती कैसे
बेचैनी सी हो रूहों में
सतरंगी किरणों के द्वारे
कौन रँग प्याली में भरता है

पलकें बिछती हैं राहों पर
सिर झुकता है सजदे में
उतरा न उतरा वही लम्हा
जो मन के फलक को भरता है

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अति उत्तम भावो का सुन्दर समन्वय्।

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  2. अति उत्तम अभिवक्ती ,बचपन में भी अकसर कुछ ऐसे सवाल उठा करते थे मन में जिनका जवाब अब तक न मिल सका आपने उन्हे प्रश्नो को बहुत खूबसूरती से कविता के माध्याम से कागज़ पर उतारा है...
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  4. उमीदोएँ की चमक ज्यादा प्रखर होती है ... सुन्दर रचना

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  5. पलकें बिछती हैं राहों पर
    सिर झुकता है सजदे में
    उतरा न उतरा वही लम्हा
    जो मन के फलक को भरता है
    Nihayat sundar rachana!

    जवाब देंहटाएं
  6. चमकीला होता है अम्बर क्या
    मेरी उम्मीदों से ज्यादा
    वो लाली , वो गुन्जन
    वो फूँक भला कौन भरता है

    वाह! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी.
    मन्त्र मुग्ध कर दिया है.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा, शारदा जी.
    आपका हार्दिक स्वागत है.

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है