गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

भरम की जद्दो-जहद

मन ने ये मान लिया है
सँगी कोई नहीं होता
ये जान लिया है

कडवे घूँट पिये बैठा है
चलना तन्हा है
सबके बीच हों चाहे
ये पहचान लिया है

कई बार ये बातेँ होंगीं
किर्चों से मुलाकातें होंगीं
अब नहीं टूटना है
ये ठान लिया है

भरम की जद्दो-जहद तोड़नी है
महक देती है मगर
हर बार रुलाती है
ये जान लिया है

इश्क खुदाई है
बिखरा है जश्ने-मुहब्बत
फिर भी क्यों तन्हाई है
ये पहचान लिया है

देर लगती नहीं दिल लगाई में
देर लगती है मगर भुलाने में
हँस के पी सकूँ कड़वे घूँट
ये ठान लिया है

6 टिप्‍पणियां:

  1. देर लगती नहीं दिल लगाई में
    देर लगती है मगर भुलाने में
    हँस के पी सकूँ कड़वे घूँट
    ये ठान लिया है
    जिसने कडवे घूँट पीना सीख लिया समझो जीना सीख लिया। बढिया रचना। शुभकामनायें।

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  2. शारदा जी,

    वाह.....बहुत खुबसूरत पोस्ट है.....

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  3. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  4. देर लगती नहीं दिल लगाई में
    देर लगती है मगर भुलाने में
    हँस के पी सकूँ कड़वे घूँट
    ये ठान लिया है

    जीना इसी का नाम है ...अच्छी प्रस्तुति


    यहाँ आपका स्वागत है

    गुननाम

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  5. अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

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