शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

वक्त का पहिया

वक्त का पहिया घूमता जाये
जीवन हाथ से छूटता जाये

बचपन बीता , यादें सुनहरी
छाप दिलों पर छोड़ता जाये

कैसे पकड़ें , यौवन अपना
धोखे का रँग छूटता जाये

साँझ का झुटपुटा , खोल पुलिन्दा
दुखड़ा अपना खोलता जाये

जीवन अपना , अनमोल मोती
कर्मों की गाथा बोलता जाये

9 टिप्‍पणियां:

  1. साँझ का झुटपुटा , खोल पुलिन्दा
    दुखड़ा अपना खोलता जाये

    अच्छी प्रस्तुति

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  2. कैसे पकड़ें , यौवन अपना
    धोखे का रँग छूटता जाये
    धोखे का रंग आखिर कब तक काम आयेगा.
    सुन्दर प्रस्तुति

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  3. कैसे पकड़ें , यौवन अपना
    धोखे का रँग छूटता जाये...


    बहुत ही सुंदर.... यह पंक्तियाँ तो दिल को छू गयीं....

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  4. आदरणीया शारदा अरोरा जी
    अच्छा काव्य प्रयास है , बधाई !

    धोखे का रंग छूटता जाए
    धोखे का रंग छूटना बड़ी उपलब्धि है …

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. वक्त का पहिया घूमता जाये
    जीवन हाथ से छूटता जाये
    बहुत खुब जी, वक्त का पहिया युही घुमता रहता है,

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  6. बचपन बीता , यादें सुनहरी
    छाप दिलों पर छोड़ता जाये...
    और...
    जीवन अपना, अनमोल मोती
    कर्मों की गाथा बोलता जाये...
    बहुत अच्छी रचना की बेहतरीन पंक्तियां.

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