शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

लिव इन रिलेशन शिप

'लिव इन रिलेशन शिप्स' को महाराष्ट्र सरकार ने स्वीकृति की मोहर लगा दी ,इससे एक ही फायदा हो सकता है कि साथ रहने पर साथी हमेशा के लिए गले पड़ सकता है इसलिए लोग रिश्ता सोच समझ कर बनायेंगे। पर अपरिपक्व उम्र से परिपक्व सोच की उम्मीद कैसे की जा सकती है !
दूर की चीज चुम्बक की तरह आकर्षित करती है ;हासिल होने के बाद अति मीठा कडुवाहट के कगार पर खड़ा हो जाता है । शादी के बंधन में करवा-चौथ जैसे तीज त्यौहार नमकीन होते रिश्तों को मिठास में बदलने में सक्षम हैं। पति जानता है कि पत्नी ने उसके लिए ही व्रत रखा है ,उसी की लंम्बी आयु की कामना की है उसी के लिए सजी संवरी है । दूसरी तरफ़ मर्जी से साथ रह रहे जोडों के लिए करवा-चौथ क्या मायने रखता है !

रिश्तों की नींव पर ही समाज खड़ा है। कितनी ही बार मुश्किल वक़्त में ये पति पत्नी को घर की देहरी लाँघ लेने से रोक लेते हैं। जिसके दूरगामी परिणाम हमेशा शुभ ही होते हैं। परिवार में एक या दो बच्चे होने की वजह से नई पीडी चाचा,मौसी वाले रिश्तों से वंचित रहने वाली है; रही सही कसर ये 'लिव इन रिलेशन शिप' वाले जोड़े कर देंगे।

जिंदगी को पवित्र, सहज और व्यवस्थित भाव से जीना चाहिए, हर रिश्ता अहम् है और साफ़ सुथरा होना चाहिए तभी तनाव मुक्त रहा जा सकता है, वो सब झूठ है जो दुनिया से छिपाया जाता, झूठ है जिसपे नजरों को चुराया जाता, सच नहीं आयेगा गवाही देने, तेरा ईमान गवाही देगा, तेरा ईमान दुहाई देगा। मन को आदत होती है टेढे मेंढे रास्तों पर चलने की, अब ये हमारी मर्जी है की हम मन पर सवार हो जायें या अपनी हार मान लें ।

हमारा समाज इंटर कास्ट मैरेज को पहले ही स्वीकार कर चुका है। 'बिन फेरे हम तेरे' वाले जोड़े भी शादी के बंधन के लिए तरसते हैं;क्योंकि मर्यादा, पवित्रता और सुरक्षा की भावना इसमें ही निहित है।
साथी चुनिए मर्जी से ,परख कर ,मगर इस रिश्ते पर शादी की मोहर जरूर लगाइए
हद के अन्दर चाहत की कोई हद नहीं
हद के अन्दर जूनून की कोई हद नहीं
जब इस संबंध की परिणिति शादी जैसी ही है तो शुरुवाद शादी जैसी क्यों नहीं ? ये हम क्या खोने जा रहे हैं, कुछ ऐसा जो मन के कैमरे में क़ैद नहीं हो पायेगा। जीवन में वसंत तो आया पर आपने उठ कर स्वागत नहीं किया!

3 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे तीन मित्र हैं जो हाई प्रोफ़ाईल वाले हैं और लिव इन रिलेशन में रह रहे हैं.. इनमे से एक तो पिछले 8 सालों से साथ हैं.. कम से कम अभी तक तो सभी खुश हैं अपने जीवन से.. उनका कहना है कि जब बच्चे के बारे में सोचेंगे तभी शादी भी कर लेंगे..

    नजदिकी परिणाम देखें तो लगता है कि इसमें कुछ बुरा नहीं है.. और दूरगामी परिणाम के लिये इंतजार करना होगा.. लोग पश्चिमी सभ्यता की दुहाई भी दे सकते हैं कि वहां ऐसा हुआ सो यहां भी ऐसा ही होगा.. मगर मैं ऐसा नहीं मानता..

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  2. समाज में विवाह की व्यवस्था के बावजूद लिवइन सदियों से चला आ रहा है। विवाह की संस्था पुरानी हो कर जड़ होने लगती है तभी लिवइन एक बंद गोदाम में खुली नयी खिड़की की तरह लगता है। लेकिन उस के साथ धूल धुआँ तो आते ही हैं। उन्हें प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है। महाराष्ट्र सरकार ने यही प्रयास किया है। यह जल्दी ही अखिल भारतीय होने जा रहा है।

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  3. कानून सिर्फ़ स्त्री के अधिकारों की रक्षा चाहता है ...ताकि कोई उसे बरसो इस्तेमाल न कर सके .....ओर जहाँ तक विवाह की बात है उसकी अपनी जगह है ओर इस बात को अब पश्चिमी देश भी महसूस कर रहे है

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