अभी मैं तुम्हारे शहर से गई नहीं हूँ
मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024
A visit to Frankfurt
अभी मैं तुम्हारे शहर से गई नहीं हूँ
सोमवार, 22 जुलाई 2024
माँ तुम अक्सर याद आती हो
माँ तुम अक्सर याद आती हो
होती हूँ जब-जब निराशा के गर्त में
तुम आ कर सहला जाती हो
कौन आस-पास घूमा करता है
दुआएँ तुम्हारी मेरा माथा चूमा करती हैं
माँ तुम सम्बल , माँ तुम धरती ,माँ तुम अम्बर
तुम होती हो आस-पास
उस तपिश को क्या नाम दूँ
एक उजास , एक छाँव आराम की ,
एक सुकून का पलना, बेफ़िक्री का आलम
बस तुम्हारे बाद अब कहीं कोई गोद नहीं
जहां मैं सर भी रख सकूँ
फिर भी तुम ही तुम नज़र आती हो , मुझे मेरे बचपन से अब तक की हर सीढ़ी पर
मेरे सपनों में आज भी जीती-जागती हू-ब-हू नज़र आती हो
माँ तुम अक्सर याद आती हो
बुधवार, 17 जुलाई 2024
बच्चों के दम पर
बच्चों के दम पर भी हम देखते हैं दुनिया
ये कभी भी , कहीं भी ले चलते हैं
कुछ भी ख़रीदवा देते हैं
और हम जैसे अपने माँ-बाप की उसी छत्रछाया में पहुँच जाते हैं
बचपन के वो नायाब से तोहफ़े , जहाँ वापसी के व्यवहार की कोई उम्मीद ही नहीं
ये अचानक कोई हमें बेफ़िक्री की सी खुमारी में झुला जाता है
हाथों से फिसलती हुई उम्र जैसे सुस्ता कर फिर से जी उठती है
दिल में भरी हुई दुआएँ हैं , आँखों में जैसे एक बार फिर से सितारे टिमटिमा उठते हैं
सीने में रुकी हुई रफ़्तार फिर से रवानी पा लेती है
और ज़िन्दगी की दूसरी पारी हसीन हो उठती है
रविवार, 21 जनवरी 2024
जीने का जज़्बा
अरमाँ की तरह जो संग चले
बाहों में वो कुछ यूँ भर ले
जैसे कोई अपना होता है
जैसे कोई सपना होता है
कानों में वो कुछ यूँ कहता
धरती अपनी ,दुनिया अपनी
मेरे संग खिले , मेरे संग जगे
जीवन की कोई परिभाषा
कोई मापदण्ड होता है भला
पकड़ो तो कोई ऐसी बात
गुड़-चीनी की तो बात ही क्या
मीठी सी खीर हो जैसे कोई
भीनी सी ख़ुशबू संग लिए
दिन-रात पगे ,हर पल महके
शनिवार, 20 जनवरी 2024
तू हर सू है छाया
तू पत्ते-पत्ते में ,हरी डालियों में
तू ही तो झूमता है ,गेहूँ की बालियों में
तू ही प्रेरणा में , तू ही वन्दना में
तू ही बजता है , समय की तालियों में
तू नस-नस में ,रग-रग में
प्राण बन के बहता है , मेरी धमनियों में
तू ही है चन्दा की चाँदनी में
तू ही चमकता है हर पहर,सूरज की लालियों में
है तो हर तरफ़ हमारा ही कोई हिसाब
उलझे हैं हम अपने ही ,कर्मों की पहेलियों में
तुझे देखने को चाहिए , इक नूरानी सी नज़र
तू हर सू है छाया ,जड़-चेतन की हैरानियों में
सोमवार, 28 अगस्त 2023
सखी-सहेलियों जैसे रिश्तों के लिये
सइयो नी , सइयो नी
आ दुक्खाँ दे लीड़े धो लइये
कुझ कह लइये , कुझ सुन लइये
तेरे वेहड़े धुप्प ही धुप्प
मेरे वेहड़े छाँ कोई ना
कट जायेगा रा नाल-नाल चल लइये
दिल दी हवाँडाँ कदे वण्डियाँ ना
अक्खाँ दे ज़रिये जो उतरन
आ रूहाँ दी कुण्डियां खोल लइये
सइयो नी , सइयो नी
आ दुक्खाँ दे लीड़े धो लइये
कुझ कह लइये , कुझ सुन लइये
आओ कभी फुर्सत में बैठें
यादों के ताने-बाने खोलें
दुखती रगों के तार ढीले कर लें
हौले से छू लें दिल को जो
उन ठण्डी हवाओं के सदके
थोड़ा-थोड़ा आराम मिले
कुछ ऐसे झूले में झूलें
सहरा में पानी होता कहाँ
इक दोस्त ही है जो मशक लिए
थोड़ा-थोड़ा पानी बख़्शे
राहों के हादसे तो धो लें
आओ कभी फुर्सत में बैठें
यादों के ताने-बाने खोलें
दुखती रगों के तार ढीले कर लें
सोमवार, 6 फ़रवरी 2023
हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है
हम फ़िफ़्टीज़ ,सिक्स्टीज ,सेवेंटीज के लोग
हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है
हम वाओ ,मार्वलस कह कर एक्सक्लेमेशन मार्क्स वाले रिएक्शन नहीं देते
हम तो बस हैरानियों पर चुप से , जड़ से ,मूर्तिवत खड़े हो जाते हैं
तुम समझ सको तो समझ लो
हमारी आँखों से टपकती हुई कृतज्ञता , प्यार और हैरानी जान सको तो जान लो
हम तो बस तुम्हारे आस-पास रहना चाहेंगे
जो कुछ हमें हासिल है , हाजिर कर देंगे
हमारी सारी दुआएँ तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमती हैं , जान सको तो जान लो
तुम जब भी ख़फ़ा होगे , हम चुप ही नज़र आयेंगे या चुपचाप रो देंगे
मगर हम नाराज़ नहीं होते
क्योंकि अपने-आप से भी भला कोई ख़फ़ा होता है ?
जान सको तो जान लो
ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा , हम कोई कविता लिख देंगे
मन तो हमारा भी गाता है ख़ुशी में , रो देता है ग़म में
हमारी आँखों से बोलता हुआ मौन पढ़ सको तो पढ़ लो
हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है