शनिवार, 31 जुलाई 2021

औरत का अस्तित्व

बेशक घर के बाहर नेम प्लेट में नाम नहीं है मेरा 

मगर ये न कहना कि नहीं है अस्तित्व कोई भी मेरा 

तेरी तन्हाई में मै , बच्चों के बचपन में मैं 
तेरा हर दिन रौशन मुझसे 
घर की व्यवस्था भी चाक-चौबन्द मुझसे 
जर्रे-जर्रे पे छाप है मेरी 
कहाँ नहीं हूँ मैं 

घर की नींव में मुस्कराती हूँ मैं 
श्रद्धा और विष्वास के बीज बोती हूँ मैं 
हाँ मैं अपने लिए जीती हूँ 
मगर मेरा सँसार ही तू है 

मैं बहुत बहानों से जी लिया करती हूँ 
बच्चों की तरक्कियों में ,सपनों में ,उड़ानों में उड़ लिया करती हूँ 
तेरे सँग-सँग कदम मिलाते हुए ,तेरी आधी दुनिया हूँ मैं 
 तेरा हर रँग अधूरा मेरे बिन 
जो रँग भरता है किसी की दुनिया में 
वो चित्रकार हूँ मै 
कहाँ नहीं हूँ मैं 

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