गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

कुछ यादगार लम्हे ,

थोड़े लम्हे चुरा लें 
थोड़ी बात बना लें 
जीवन की आपा-धापी से 
फुर्सत का कोई सामान जुटा लें 

पेड़ों के झुरमुट से झाँकता हुआ ,
तारों भरा आसमाँ 
मद्धिम सी रौशनी में ,समुद्र  किनारे चंचल सी लहरों की अठखेलियाँ 
तुम ही तो लाये हो ये मुकाम 

यूँ ही चलते-चलते  लिखा है दिल ने कुछ तुम्हारे नाम 
उँगली पकड़ो साथ चलो तुम , भूलो न सुबह का पैगाम 
जमीन होती है तो आसमान होता है , खिले होते हैं रँग भी तमाम 

अपनी अँखियों से बाँट रहे हो उजियारा 
खिल उठे हैं फूल ही फूल तमाम 
कुछ यादगार लम्हे , राहत का सामान जुटा लें 


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