अपनी अपनी सरहदें ओढ़े हुये , मिलते हैं हम जब किसी से
नहीं मिलता है कोई अपने जैसा
पहुँचेंगे कहाँ ? जब चलते ही नहीं , हम कभी दिल से
पन्छी ,नदिया और तारे देखो
सूरज ने कब बाँधे किनारे देखो
हम ही मूढ़ भये
सँग चल पाये न किसी के , कदम हमारे देखो
उम्मीदों के दिल छोटे होने लगे
साँझ में गड-मड होती हुई रात
इक लम्बी रात के दामन में , कोहरे से भरी हुई सुबह
बादलों के पार कहीं , है सूरज का ठिकाना
जानते तो सब हैं , मगर रूठे हुये दिल ने है कब ये माना
सरहदें पिघलें तो दीदार हो इक नई सुबह का
हसरतें आ कर सीने में फिर मचलें
दिल-ओ-दिमाग के फैसले में ,
फासले न अब झलकें
नहीं मिलता है कोई अपने जैसा
पहुँचेंगे कहाँ ? जब चलते ही नहीं , हम कभी दिल से
पन्छी ,नदिया और तारे देखो
सूरज ने कब बाँधे किनारे देखो
हम ही मूढ़ भये
सँग चल पाये न किसी के , कदम हमारे देखो
उम्मीदों के दिल छोटे होने लगे
साँझ में गड-मड होती हुई रात
इक लम्बी रात के दामन में , कोहरे से भरी हुई सुबह
बादलों के पार कहीं , है सूरज का ठिकाना
जानते तो सब हैं , मगर रूठे हुये दिल ने है कब ये माना
सरहदें पिघलें तो दीदार हो इक नई सुबह का
हसरतें आ कर सीने में फिर मचलें
दिल-ओ-दिमाग के फैसले में ,
फासले न अब झलकें
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
जवाब देंहटाएंफुर्सत मिले तो .शब्दों की मुस्कुराहट पर आकर नई पोस्ट जरूर पढ़े....धन्यवाद :)
बहुत बहुत धन्यवाद हौसला अफ़ज़ाई के लिए ....Sanjay ji
जवाब देंहटाएं