रविवार, 1 मई 2011

और युगों सा बीत गये

ख़ामोशी को पढ़ना आता है
कितने किनारे टूट गये
एक टाँग पर खड़े रहे हम
देखो हमको चलना आता है

धरती अम्बर रूठ गये
और सहारे छूट गये
रात सा साथी पाया हमने
और युगों सा बीत गये

झिलमिल तारों को देखा है
अपने सितारों को देखा है
बीज तो फूलों के बोते सभी
उगता वही जो किस्मत में बदा है

गढ़ देते हम कितने नगमें
शान में तेरी ऐ मौला
उम्मीद का दामन पकड़े हुए
रात और दिन से छूट गये

15 टिप्‍पणियां:

  1. ख़ामोशी को पढ़ना आता है
    कितने किनारे टूट गये
    एक टाँग पर खड़े रहे हम
    देखो हमको चलना आता है

    Aagaaz itna shaandaar to baaqee rachana ke kya kahne! Baar,baar padhee! Rashk hota hai! Kaash! Aisa mai bhee likh patee!

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  2. क्षमा जी , आपको इतना पसंद आई , बहुत शुक्रिया , बस कभी खुद से अलग होकर ज़िन्दगी को पढ़ लेते हैं ।

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  3. ख़ामोशी को पढ़ना आता है
    कितने किनारे टूट गये
    एक टाँग पर खड़े रहे हम
    देखो हमको चलना आता है

    ...बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना..बहुत बढ़िया

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  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. बहुत सुंदर ओर मर्मस्पर्शी रचना धन्यवाद

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  6. बहुत खूब ...बधाई इस सुंदर रचना के लिए ! शुभकामनायें !

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  7. बहुत खूबसूरत एवं गहन रचना ! बधाई स्वीकार करें !

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  8. ख़ामोशी को पढ़ना आता है
    कितने किनारे टूट गये
    एक टाँग पर खड़े रहे हम
    देखो हमको चलना आता है
    ...वाह!

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  9. अहसासों को खूबसूरती से संजोया है।

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  10. झिलमिल तारों को देखा है
    अपने सितारों को देखा है
    बीज तो फूलों के बोते सभी
    उगता वही जो किस्मत में बदा है
    ....बहुत बढ़िया भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना.....

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  11. बीज तो फूलों के बोते सभी
    उगता वही जो किस्मत में बदा है
    बहुत खूबसूरत एवं गहन रचना, बधाई.....

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है