मंगलवार, 31 अगस्त 2010

तेरी चाँदनी बटोरी हमने

किश्तों में मिली
कैसा है सिला
जिन्दगी तेरे सिवा
कोई लुभा न पाया हमें

सहराँ की तपती रेत पर
साये की हसरत लिये
टुकड़ों में धूप बटोरी हमने

दरख्त के साये में
छन-छन के आती
धूप निहारी हमने

चाँद पहलू में लिये
चाँदनी की आरजू में
यूँ रात गुजारी हमने

कैसा है सिला
किश्तों में मिली
जिन्दगी , तेरी चाँदनी बटोरी हमने

4 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर रचना,
    जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  2. दरख्त के साये में
    छन-छन के आती
    धूप निहारी हमने...
    अच्छा प्रयोग है...
    या यूं कह सकते हैं-
    ...तपती राहों के लिए एक शजर काफ़ी है.

    जवाब देंहटाएं
  3. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है