रविवार, 28 दिसंबर 2008

कद

लोग पहचानते हैं सिर्फ़ कद को
चाहे वो ठूँठ ही हो , छाया का दम भरते हैं
आंखों पर चश्में चढा , जग को देखा करते हैं
आदमी आदमी न रहा , हवा को देखा करते हैं
अपने ही मूल्यों को , क्यों कर ये नकारा करते हैं
वो हरियाली , जो मनों से मिला करती है
नजर अंदाज़ की , जिससे फूल खिला करते हैं
कहने को वक़्त के साथ साथ चला करते हैं
क़द परछाईं हो जैसे , दिन रात साथ चला करते हैं
क़द घुल जाता है तो ,खुशबू को भी प्यार आता है
हरियाली छा जाती , ठूंठों पे भी बौर आता है

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत निराला अंदाज़ है आपके लेखन का...बधाई...
    नीरज

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  2. लोग पहचानते हैं सिर्फ़ कद को

    चाहे वो ठूँठ ही हो , छाया का दम भरते हैं
    बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आप ने, लेकिन मेने महसुस किया है की कई बार इस ठूँठ का भी बहुत सहारा होता है परिवार को बांधे रखने के लिये.
    धन्यवाद

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