शनिवार, 23 अप्रैल 2011

कौन गीतों में उतरेगा , नज्मों में ढलेगा

बहुत अपने से जो लगते हैं , कुछ ऐसे रिश्तों के लिये ,

सावन के अन्धे को दिखता है हरा ही हरा
जेठ के जले को दुपहरी भी लगे बहाने की तरह

मिले हैं कुछ ऐसे रिश्ते भी
साथ चलने को मेहरबानी की तरह

है किसको पता , कौन गीतों में उतरेगा
नज्मों में ढलेगा रूहे आसमानी की तरह

हम उनकी बात टाल न सकें
ये कमजोरी है या ताकत पहेली की तरह

वो मुस्कराने लगते हैं अक्सर
यादों की क्यारी में जुगनुओं की तरह

वो जो लोग समा जाते हैं धड़कन में
इतने अपने हैं कि जिस्म में जाँ की तरह

थोड़े पैबन्द लगे थोड़े सितारे हैं टंके
जिन्दगी के दिलासे , पींगें सावन की तरह

तेरी दुनिया का नशा नाकाफी है
ये रिश्ते हैं या नाते सुरुरों की तरह

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

लगते हैं फूल महकने वो

ऐसी कुछ यादें हर माँ के दिल में बसती हैं ...
तेरी फ्राकों पर काढ़े जो फूल
तेरे नन्हे तकिये पर
क्रोशिये से बनाई तितली
सीने में सहेजी यादों से आते हैं निकल
लगते हैं फूल महकने वो
तितली मँडराने लगती है

तेरे टोपे मोज़े बुनते हुए
जाने कब लड़कपन उड़ है गया
तेरी एक एक याद को रखना चाहा
फिर सोचा , यादों से उलझना ठीक नहीं
बातों में अटकना ठीक नहीं
बाँटीं तेरी कितनी चीजें
फिर भी , तेरी नन्ही रजाई मोतियों वाली , नानी का उपहार
नानी की याद भी बसी जिसमें
तेरा कोट भी एक फर वाला , रख डाला
तेरा नन्हा गोरा गुलाबी मुखड़ा तो
आज भी उसमें आता है नजर
मेरे मन के कोने से झाँकता है वो
फूल वो आकर महकने लगते
तितली मँडराने लगती है

बुधवार, 30 मार्च 2011

कर्म यज्ञ है आहुति जीवन

जात पूछो साधू की
एक ईश के बन्दे

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
जात पात के रन्दे

राह सँकरी पहुँचे वहीं
धर्म नहीं हैं फन्दे

कर्म यज्ञ है आहुति जीवन
अपने अपने हैं हन्दे

एक नूर से उपजे हैं सब
कौन भले कौन मन्दे

रन्दे=औजार जिनसे तराशा जाता है
हन्दे =उपभोग से पहले ब्रहामण के लिये निकाला जाने वाला भाग

सोमवार, 14 मार्च 2011

वो जो रोज रोज मरते हैं

मरना मना है
वो जो रोज रोज मरते हैं
लम्हा लम्हा , ज़र्रा ज़र्रा
उसका क्या ?

कर्ज मर्ज , दँगा पँगा
नशा वशा , हर्ज तर्ज़
सौ बहाने मौत के
एक बूँद ज़िन्दगी से महरूम
बेकसी , बेचारगी , लाचारगी
कटोरा लिये हाथ में
भीख माँगे उपहारों की
सीने में जँगल झाड़ हैं
भड़के चिन्गारी दावानल सी
टूट फूट , मरम्मत होती सदियों से
निदान उपचार से बेहतर है
दो बूँद जिन्दगी की पिला
अकड़ न जाए मन कहीं
टूट कर मुर्दा हुए या नश्तर बने
जिन्दगी का रस ही आँचल बने
भूल कर भी न ठोकर लगा
सीने में मचलते अरमान हैं
तुझसे ही कई तूफ़ान हैं
दिशा दिखा , दशा बदल
जिन्दगी मेहरबान है
जिन्दगी मेहरबान है

सोमवार, 7 मार्च 2011

आकाश को नहीं छोड़ा करते

जिस गली जाना न हो
उसका पता नहीं पूछा करते
सो गए ज्वालामुखी
चिन्गारी को नहीं छेड़ा करते

हश्र तो एक ही होता है
फना हो कर भी , लब पे लाया नहीं करते
मेरे मौला की मर्जी क्या है
हँसते हुओं को रुलाया नहीं करते

वक्त से पहले वक्त के सफ्हे
नहीं पलटा करते
इस लम्हे से पहले उस लम्हे तक
नहीं पहुंचा करते

यूँ बियाबान से नाता
नहीं जोड़ा करते
सूख जाते हैं जड़ों से
जीवन से मुहँ नहीं मोड़ा करते

एक ही बात कही
टूटते हुए तारों ने
टूटे हुए लम्हों की गिनती में
आकाश को नहीं छोड़ा करते

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

बिना शिकन डाले

वो दस बार तेरी चद्दर को बिगाड़ें
और तू माथे पे बिना शिकन डाले उसे सँवारे
जो इतना सब्र है तो आगे बढ़
कोई खुदा है तुझे संभाले हुए

कहाँ मुश्किल है कविता करना
मुश्किल है तो बस उसे जीना
कोई डोर है जो आड़े वक्त में भी
टूटने से है उसे बचाए हुए

इम्तिहान तो है तालीम का हिस्सा
और मौका क़ाबलियत दिखाने का
ठुकते पिटते बर्तन को कोई
ठह्कने से है बचाए हुए

देता है खुदा भी थपकियाँ
चाहिए बस पढ़ने को नजर
हिसाब क्यों कर देगा वो
छाया की तरह है जो संभाले हुए

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

और ख़ुशी से नयन सजल

बेटे ने PCC (Chartered Accountant) में - 29th Rank (India,Dubai,Nepal) प्राप्त किया । आज बसन्त पंचमी , वीणा वादिनी का दिन , सुबह से ही मन गुनगुना रहा था ...
तू जो पकड़ ले हाथ तो
सारे इरादे हों सफल

दिखाए जो तू रास्ता
सारे नतीजे हों अव्वल

बल्लियों उछलता दिल
खिले ज्यों झील में कमल

फूटती पहली किरण
सूरज देखो आए निकल

कलम ही है नवाजती
भविष्य यूँ उज्वल-धवल

हो वीणा-वादिनी का वर
चलना है बस संभल-संभल

माँ की ममता ने घर पाया
आज फिर नूतन नवल

है द्रवित हृदय हमारा
और ख़ुशी से नयन सजल

और कभी मन यूँ गुनगुना उठता ...
आस के फूल महकाए रखना
दिया जला है , जलाए रखना
सुखद भविष्य और साथी मन के
अपने बच्चों को देना
मांगती है एक माँ , दूसरी माँ से
मेरा तो है इतना सा जगत
तू है जग की जननी माँ
इल्तिज़ा मेरी तो है इतनी सी फ़कत
अपने बच्चों के चेहरे पर
मुस्कान सदा बनाए रखना
आस के फूल महकाए रखना

और परिणाम सुखद आया ....


वक्त की मुट्ठी खुली तो लम्हा हाथ आया
सलाम ठोकता हुआ नसीब भी साथ आया


शुक्रगुजार हूँ माँ सरस्वती की , जिसने आज ये दिन है दिखाया .....आप सब के साथ ख़ुशी बाँट रही हूँ ...