शनिवार, 15 मई 2021

चन्द गुलाबों की खातिर



खिलौने दे के बहलाये गये हैं 
बच्चों की तरह फुसलाये गये हैं 

नसीब से तो जँग होती नहीं है 
हर ठोकर पे समझाये गये हैं 

कोशिशों का ही नाम है चलना 
ज़िन्दगी से कदम मिलाये गये हैं 

चन्द गुलाबों की खातिर ही 
कितना हम काँटों पे चलाये गये हैं 

जो मिला वो कभी तोला कभी माशा 
झुनझुनों की तरह हर दम बजाये गये हैं 

6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-05-2021 ) को 'मैं नित्य-नियम से चलता हूँ' (चर्चा अंक 4068) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. कोशिशों का ही नाम है चलना
    ज़िन्दगी से कदम मिलाये गये हैं

    बहुत खूब रचना

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  3. टिप्पणी कर्ताओं का बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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