खिलौने दे के बहलाये गये हैं
बच्चों की तरह फुसलाये गये हैं
नसीब से तो जँग होती नहीं है
हर ठोकर पे समझाये गये हैं
कोशिशों का ही नाम है चलना
ज़िन्दगी से कदम मिलाये गये हैं
चन्द गुलाबों की खातिर ही
कितना हम काँटों पे चलाये गये हैं
जो मिला वो कभी तोला कभी माशा
झुनझुनों की तरह हर दम बजाये गये हैं
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-05-2021 ) को 'मैं नित्य-नियम से चलता हूँ' (चर्चा अंक 4068) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा में शामिल करने का असीम शुक्रिया
हटाएंवाह , खूबसूरत ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंकोशिशों का ही नाम है चलना
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी से कदम मिलाये गये हैं
बहुत खूब रचना
bhut hi badiya post likhi hai aapne. Ankit Badigar Ki Traf se Dhanyvad.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी कर्ताओं का बहुत बहुत धन्यवाद
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