ये आस्था का सैलाब है
साईं बाबा हों या राम हों
महान-कर्ता को ,उसके जीते-जी ,कहाँ हम पहचानते
मरने के बाद ही उसे ,उसे भगवान मानते
ये हमारी सँस्कृति है के गोबिन्द से ज्यादा हम ,गुरु को पूजते
गुरु हमें भगवान से मिलाये , सन्मार्ग दिखलाये
उमँगेँ जब टुकड़ा-टुकड़ा होतीं
चाहतीं हैं किसी विष्वास की नाव चढ़ जाना
विष्वास ही तो आदमी के क़दमों में दम भरता
ये मेरा देश है जहाँ ऋषि-मुनि और पेड़-पौधे भी पूजे जाते
आस्था ही है जो गँगा को गँगा माँ माने
वरना तो वो है बहता पानी
आस्था ही है जो कितनों को एक सूत्र में पिरोये हुए
चुग ले कोई ,मोती अगर ,आस्था की झील से
जीने दे उसे , भगवान का ही नूर है , झिलमिला कर दुनिया को चलाये हुए
साईं बाबा हों या राम हों
महान-कर्ता को ,उसके जीते-जी ,कहाँ हम पहचानते
मरने के बाद ही उसे ,उसे भगवान मानते
ये हमारी सँस्कृति है के गोबिन्द से ज्यादा हम ,गुरु को पूजते
गुरु हमें भगवान से मिलाये , सन्मार्ग दिखलाये
उमँगेँ जब टुकड़ा-टुकड़ा होतीं
चाहतीं हैं किसी विष्वास की नाव चढ़ जाना
विष्वास ही तो आदमी के क़दमों में दम भरता
ये मेरा देश है जहाँ ऋषि-मुनि और पेड़-पौधे भी पूजे जाते
आस्था ही है जो गँगा को गँगा माँ माने
वरना तो वो है बहता पानी
आस्था ही है जो कितनों को एक सूत्र में पिरोये हुए
चुग ले कोई ,मोती अगर ,आस्था की झील से
जीने दे उसे , भगवान का ही नूर है , झिलमिला कर दुनिया को चलाये हुए
आस्था और सोच के आगे किसका वश ... पत्थर में भी तो भगवान् देखते हैं हम ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-09-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1726 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार