बुधवार, 1 जनवरी 2014

नया साल है

नया साल है ,नई सुबह है 
आओ हम कुछ मिल-जुल बाँटें 
सूरज की आहट पर हम भी 
उजली-उजली किरणें छाँटें 

छूट गया जो , छोड़ो यारों 
आज को अपना सब कुछ मानें 
खुश होकर हम ,खुशहाली बाँटें 

आज जो हमने बोया है 
कल दुगना होकर लौटेगा 
विष्वास की ऐसी फसलें काटें 

नम सीने में ज़रा उजाला 
घर भर को चमका देता है 
धूप की मुट्ठी भर-भर बाँटें 

हर दिन हो दशहरे जैसा 
हर रोज उमँग दीवाली सी 
जीवन की ऐसी तरंगें बाँटें 

3 टिप्‍पणियां:

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