मंगलवार, 21 जून 2011

उम्र को दस्तक देते हुए

किसने देखा है ...
डाल पे आम को पकते हुए
और उम्र को दस्तक देते हुए
उल्टी गिनती है लम्हों की
और ज़ार-ज़ार दिल रोते हुए

कुछ वक्त से पहले पक जाते
कुछ कच्चे तोड़ लिये जाते
मुखड़े जो थे अरमान भरे
रँगों के निशाँ हैं खोते हुए

सलवट सलवट जो सोया है
झुर्री झुर्री अरमान बड़े
काटीं हैं सबने वही फसलें
खुशबू के चमन से होते हुए

चाँदी चाँदी है रातों की
और धूप सुनहरी छाया बनी
छत के नीचे कोई तपता नहीं
मँजिल के बहाने बोते हुए

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब ।
    सादा अंदाज़ में हक़ीक़त का बयान है यह।

    http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/02/create-blog.html

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  2. सच्चाई सी अपनी बात कहने का उदाहारण अच्छी लगी रचना , बधाई

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  3. किसने देखा है ...
    डाल पे आम को पकते हुए
    और उम्र को दस्तक देते हुए
    उल्टी गिनती है लम्हों की
    और ज़ार-ज़ार दिल रोते हुए

    कुछ वक्त से पहले पक जाते
    कुछ कच्चे तोड़ लिये जाते
    मुखड़े जो थे अरमान भरे
    रँगों के निशाँ हैं खोते हुए
    Itna behtareen aa pata nahee kaise likh letee hain?

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  4. किसने देखा है ...
    डाल पे आम को पकते हुए
    और उम्र को दस्तक देते हुए
    उल्टी गिनती है लम्हों की....वाह..बहुत खूब

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