सोमवार, 19 अप्रैल 2010

बुलबुलें जाने लगी हैं

एक हफ्ते की छुट्टी लेकर दोनों बेटियाँ घर आईं , चौथे दिन से ही उल्टी गिनती का अहसास होने लगा था , मन पहले डूबा , फिर हौले से तैर कर ऊपर आया और खुद को समझाते हुए जग से कदम मिलाते हुए चलने लगा | इस प्रक्रिया को इस कविता में सहज ही महसूस किया जा सकता है | भावुक मन की समझदारी भी इसी में है .....
बुलबुलें जाने लगी हैं
वीराने की आवाजें आने लगी हैं
मीलों चलना होता है सहराँ में
अपनी नमी घबराने लगी है
किनारे तोड़ने को फिर बहाने आ गए
बरसाती नदिया बेतहाशा छलकाने लगी है
खुद से अलग हो कर भी कोई चल है पाता
टुकड़ों में कोई रौशनी जगमगाने लगी है
चहचहाती हैं बुलबुलें यादों में
खुद को देखा , जिन्दगी लौट आने लगी हैं
लौट कर आयेंगे फिर से , फुसफुसाता है गुलशन
उम्मीद फिर बहलाने लगी है
इनके परों ने टोहना है आकाश को
मेरी बेड़ियाँ शर्माने लगी हैं

10 टिप्‍पणियां:

  1. मीलों चलना होता है सहराँ में
    अपनी नमी घबराने लगी है
    वाह बहुत सुन्दर

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  2. bahut sundar


    मीलों चलना होता है सहराँ में
    अपनी नमी घबराने लगी है

    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  3. सच...अहसासों और भावनाओं को बहुत सुन्दरता से उकेरा है.

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  4. बुलबुलों से ही घर में रौनक रहती हैं, ये चले जाती हैं तो बस वीराना ही है। बढिया रचना के लिए बधाई।

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  5. इनके परों ने टोहना है आकाश को
    मेरी बेड़ियाँ शर्माने लगी हैं
    बस आकाश को नापने के लिए ही तो बुलबुल को यूँ विचारने को छोड़ना पड़ता है...बहुत ही सुन्दर रचना..ममता छलकाती हुई

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  6. ab aisa hi haal hai jab bhi yahan kaam se 6 mahine me ek baar ghar jata hun...sab swarg jaisa lagta hai...par chuttiyan khatm hona jaise seene me chubhne lagta hai...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  8. woh dono apki parchayi hain,
    ek maa se jyada kon pyar kar sakta hai betiyon ko!

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  9. I really like the fact that though the poem starts on a sad note it picks up hope and ends at a positive note...if everything is seen with a hope of something good on the way,life becomes easier.

    Jana hamesha mushkil hota hai mumma aur aane/milne ke ummed utna hi pyara ehsas.

    Nice heart felt poem.

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