रविवार, 15 नवंबर 2009

सबक अभी बाकी है

प्रेम ही रास्ता खोलता है , निर्मल आकाश का
वरना तंग गलियों में कहाँ गुजर बाकी है

छिल जाता है जिगर , घबरा के मुँह फेरता है जमीर
धड़कनें साँसों से कहती हैं , सफर अभी बाकी है


मोहरे बने हैं हम , खाता खुला है कर्मों के हिसाब का
जिन्दगी मुस्करा के कहती है , सबक अभी बाकी है


प्रेम की क्षीण किरण मुस्कराती है , हूँ तो लता सी
जान पे बनी है मगर , साँस लेने की ललक अभी बाकी है


सबक बाकी है , रात का कोई पहर अभी बाकी है
ललक बाकी है , आसमाँ की महक अभी बाकी है

5 टिप्‍पणियां:

  1. मोहरे बने हैं हम , खाता खुला है कर्मों के हिसाब का
    जिन्दगी मुस्करा के कहती है , सबक अभी बाकी है..

    गहरी बात ........ वक़्त जिंदगी के सफ़र में बाहौत कुछ सिखाता है इंसान को ........ उम्दा रचना है ....

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  2. आप नें कम शब्दो में बहुत बड़ी बात कह दी, दिल को छु गयी आपकी ये रचना।

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  3. प्रेम की क्षीण किरण मुस्कराती है , हूँ तो लता सी
    जान पे बनी है मगर , साँस लेने की ललक अभी बाकी है
    जीने की ललक ही तो है जो बनी रहनी चाहिये.

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  4. छिल जाता है जिगर , घबरा के मुँह फेरता है जमीर
    धड़कनें साँसों से कहती हैं , सफर अभी बाकी है
    बहुत गहरी बाते कह दी आप ने इस सुंदर रचना मै.
    धन्यवाद

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