दुआ में उठते हुए हाथ भी थक गये हैं
नाराज़गी भी कर देती है ज़िन्दगी से महरूम
दरक रहा है वक़्त
उम्र पसीने-पसीने है
इकतरफा जतनों से कोई बात कहाँ बनती
मेरी कश्ती में चन्दा भी है ,चाँदनी भी है
झील में अक्स भी है
लम्स , हाथों से कुछ छूट गया है
मील के पत्थर भी तकते हैं दायें बाएं
अभी बची है जान मुसाफिर
परवाज़ को समन्दर है
धरती और गगन रूठ गया है
वक्त मेरा सगा हुआ ही नहीं
उसने वही चीज दबा कर रख ली
शिद्दत से जो चाही
अब यकीं के दफ्तर में , दुआ पानी भरती है
तमन्ना गर्द बुहारती है
मगर कुछ है , जो अभी हारा नहीं है
नाराज़गी भी कर देती है ज़िन्दगी से महरूम
दरक रहा है वक़्त
उम्र पसीने-पसीने है
इकतरफा जतनों से कोई बात कहाँ बनती
मेरी कश्ती में चन्दा भी है ,चाँदनी भी है
झील में अक्स भी है
लम्स , हाथों से कुछ छूट गया है
मील के पत्थर भी तकते हैं दायें बाएं
अभी बची है जान मुसाफिर
परवाज़ को समन्दर है
धरती और गगन रूठ गया है
वक्त मेरा सगा हुआ ही नहीं
उसने वही चीज दबा कर रख ली
शिद्दत से जो चाही
अब यकीं के दफ्तर में , दुआ पानी भरती है
तमन्ना गर्द बुहारती है
मगर कुछ है , जो अभी हारा नहीं है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है