जख्म जो फूलों ने दिये
हाय सजा के बैठे थे , फूलदानों में
अहसास भूलों ने दिये
रुका पानी गन्दला हो जाता है
बहते जीवन में दर्द शूलों ने दिये
कितनी मासूमियत से खिलते हैं
वफ़ा की राह में वक्ती झूलों ने दिये
अपनों के हाथ अपनी नब्ज देखो तो
उठे जो हाथ उन्हीं वसीलों ने दिये
जख्म जो फूलों ने दिये
शारदा जी,
जवाब देंहटाएंआपने तो फूलों के ज़ख्मों पर मरहम लगा दिया………………आपके उदगार ,आपकी भावनाओं को मेरा नमन है……………………।
हाय सजा के बैठे थे , फूलदानों में
अहसास भूलों ने दिये
वाह …………अब इन अहसासो के लिये कहाँ से शब्द लाऊं।
अपनों के हाथ अपनी नब्ज देखो तो
उठे जो हाथ उन्हीं वसीलों ने दिये
जख्म जो फूलों ने दिये
इन पंक्तियों ने तो जैसे सारा सच कह दिया……………बडी गहराई से महसूस किया है आपने ज़ख्मो के दर्द को।
आपने मुझे निशब्द कर दिया।
भावुकता से भरी संवेदनशील पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से आपने लिखा है ....
जवाब देंहटाएंगहरे भाव...दिल को छूने वाले जज़्बात हैं.
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