बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

तुम ऐसे मिलना

मेरे बच्चों , जब भी मिलना , कुछ ऐसे मिलना 

जैसे बिछड़ी हुई डालियाँ तने से मिलें 

ये जान लो कि रिश्तों की गर्मी भी हमें चलाती है 

ये वो शय है जो बाज़ार में बिकती नहीं , न ख़रीदने से मिले 


जड़ों को सींचोगे तो रहोगे हरे-भरे 

थक के बैठोगे तो यही छाँव सहलायेगी तुम्हारी शिकनें 

कर लो रौशन , कर लो रौशन अपनी दुनिया 

ये उजाले न फिर ढूँढने से मिलें 


इक बूटा लगाया है , छाँव की दरकार मुझे 

तुम इस तरह मिलना के जैसे रूह रूह से मिले 

कामना की अँधी दौड़ में , भूल न जाना खुद को ही 

जब भी मिलो इस तरह मिलना के जैसे अपने-आप से मिले 

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