सहलाओ मेरे ज़ख्म भोले ताकि मैं सो जाऊँ
शिव के प्राँगण में , नींद क्यूँ रूठी है
लाशों के ढेर जहाँ कभी गाजर-मूली से बिछ गये हों
दफन हुए अपने जहाँ ,साथ-साथ सपनों के
आज वहाँ हमने बिस्तर लगाया है
मेरे जख्म कुछ भी नहीं , मेरा दर्द छोटा है
तेरे लिए सारी दुनिया है बराबर , बम-बम भोले
आस्था की नगरी में गूंजे बम-बम भोले
प्राणों की आहुति से धरती डोले
सवाल सदियों के हैं , जवाब एक ही है
अपना-अपना कर्म ही अपनी अपनी विधि हो ले
शव को शिव करने की ताकत है जहाँ
आस्था का सैलाब है वहाँ
मेरी हस्ती कुछ भी नहीं
मेरी नींद की बिसात ही क्या
मेरी साँसें भी सार्थक हों ,
जो तेरे काम आ जाएँ , बम-बम भोले
शिव के प्राँगण में , नींद क्यूँ रूठी है
लाशों के ढेर जहाँ कभी गाजर-मूली से बिछ गये हों
दफन हुए अपने जहाँ ,साथ-साथ सपनों के
आज वहाँ हमने बिस्तर लगाया है
मेरे जख्म कुछ भी नहीं , मेरा दर्द छोटा है
तेरे लिए सारी दुनिया है बराबर , बम-बम भोले
आस्था की नगरी में गूंजे बम-बम भोले
प्राणों की आहुति से धरती डोले
सवाल सदियों के हैं , जवाब एक ही है
अपना-अपना कर्म ही अपनी अपनी विधि हो ले
शव को शिव करने की ताकत है जहाँ
आस्था का सैलाब है वहाँ
मेरी हस्ती कुछ भी नहीं
मेरी नींद की बिसात ही क्या
मेरी साँसें भी सार्थक हों ,
जो तेरे काम आ जाएँ , बम-बम भोले
गहन!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया उदान्त जी
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